भारतीय चिकित्सा पद्धति के लिए राष्ट्रीय आयोग (NCISM) ने आयुर्वेदिक चिकित्सा एवं शल्य चिकित्सा स्नातक (BAMS) पाठ्यक्रम के लिए एक नया पाठ्यक्रम पेश किया है, जिसमें तृतीय (अंतिम) व्यावसायिक वर्ष भी शामिल है। इस पाठ्यक्रम के अद्यतन ने शैक्षणिक और व्यावसायिक समुदायों के बीच चर्चाओं और बहसों को जन्म दिया है।
जनमानस मे विवाद के बिंदु:
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क्रियान्वयन की चुनौतियाँ: परिणाम-आधारित पाठ्यक्रम में बदलाव के लिए शिक्षण पद्धतियों, मूल्यांकन पैटर्न और संकाय प्रशिक्षण में महत्वपूर्ण बदलावों की आवश्यकता होती है। कुछ संस्थानों को इन नए आवश्यकताओं के अनुरूप ढलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
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संसाधन संबंधी बाधाएँ: अद्यतन पाठ्यक्रम के लिए अतिरिक्त संसाधनों, जैसे कि विशेषीकृत संकाय और आधारभूत संरचना की आवश्यकता हो सकती है, जिसे कुछ कॉलेजों के लिए प्रदान करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
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मानकीकरण संबंधी चिंताएँ: सभी संस्थानों में समान रूप से इस पाठ्यक्रम को लागू करना एक चिंता का विषय है, क्योंकि संसाधनों और तैयारियों में अंतर शिक्षा की गुणवत्ता में असमानता पैदा कर सकता है।
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हितधारकों का विरोध: कुछ शिक्षक और चिकित्सक जो पहले के पाठ्यक्रम के आदी हैं, वे इन बदलावों का विरोध कर सकते हैं, जिससे नए विषय-वस्तु की प्रभावशीलता और प्रासंगिकता को लेकर बहस हो सकती है। यदि मैं एक लाईन मे कहना चाहुं तो सबके लिये एवरेस्ट दुसरे दिखने मे बहोत मनोहर होता है ,परंतु उसे पार कर पाना हर एकसे संभव नही होता है या मुशकिलो से भरा हो सकता है .
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