होली का त्योहार और इसका विज्ञान

होली का त्योहार सिर्फ रंगों और मस्ती का ही नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरा वैज्ञानिक महत्व भी छिपा है। होली का समय आमतौर पर सर्दी के खत्म होने और गर्मी के आगमन के बीच का होता है। इस दौरान मौसम में बदलाव के कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो सकती है, जिससे लोग सर्दी, खांसी और त्वचा संबंधी समस्याओं से प्रभावित होते हैं।

होलिका दहन के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है। जब होलिका दहन के लिए आग जलाई जाती है, तो उसकी गर्मी आसपास के वातावरण में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया और विषाणुओं को नष्ट करने में मदद करती है। यही कारण है कि लोग होलिका दहन के चारों ओर परिक्रमा (फेरे) लगाते हैं, जिससे शरीर को गर्मी मिलती है और स्वास्थ्य लाभ होता है।

रंगों के उपयोग का भी वैज्ञानिक आधार है। प्राकृतिक रंगों में औषधीय गुण होते हैं, जो त्वचा को पोषण देने के साथ-साथ शरीर को स्फूर्तिवान बनाते हैं। इसके अलावा, होली के दौरान सामाजिक मेलजोल, हंसी-मजाक और सकारात्मक ऊर्जा मानसिक तनाव को दूर करके खुशी का एहसास कराती है।यह संभवतः रंगों  का प्रभाव खुशी के हार्मोन्स पे होता है।

इस तरह, होली केवल एक सांस्कृतिक पर्व ही नहीं है, बल्कि यह विज्ञान और स्वास्थ्य से भी गहराई से जुड़ी हुई है।

                                                          डाॅ.प्रशांत लि.रसाळे



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